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Showing posts from October, 2024

उल्फत

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घड़ी भर तन्हाई में बैठते ही, दफ्फतन तेरी याद का आ जाना चाय की हर चुस्की के साथ मेरा, क़तरा क़तरा तुझे पी जाना,  मेरी तवज्जो को शौक से कर तगाफुल, ए बेपरवाह  मेरी बेशुमार उल्फत को पसंद है तेरा बेहिसाब आजमाना।

चाहत

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चाहत तो ये कि तुझे देखा जाए जी भरने तक। फिर मसला ये भी है कि ये जी भरेगा कब।

परस्तिश

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एक मुद्दत के बाद जो सीने से आ लगे वो, धड़कनें धड़कना छोड़ कर परस्तिश में लग गईं । ...

Micro Dribble

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... And then, she had to relearn what he had made her unlearn quite a while ago...  Parastish