वो तस्वीर


तस्वीर गैर के साथ दिखा कर क्या करना चाहते हैं ?
जो ख़ुद नहीं कह सकते
वो हमसे कहलवाना चाहते हैं ?
उनके शानों पर आपके हाथ हमें नागवार गुजरते हैं ।
यह जान कर भी  
अनजान बनना चाहते हैं ?
हमारी उल्फत के धागों को तोड़ना जो है, तो सुनें,
इश्क़ का उसूल है, मेरे हबीब
ये फिर से जोड़े नहीं जाते हैं ।
इश्क़ के सफ़र में वापिसी अकेले अकेले होती है,
कयामत तक फिर महबूब पुराने 
वापिस बुलाए नहीं जाते हैं ।
हम सा कोई मिले आपको ये तो नामुमकिन है
पर किसी एक के लिए
प्यारे यार भी तो भुलाए नहीं जाते हैं।
कि फिर टकराएंगे एक दूसरे से हम दोनो...
इसकी उम्मीद तो ज़रा कम है
पर फिलहाल, चलिए,
आप अपने, और हम अपने रास्ते निकलते हैं ।



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